अनुपमा जी रसोई में सुबह का नाश्ता बना रही थीं। बेटे को आफिस जाना था इसलिए पहले बेटे का नाश्ता लगा दिया। इन दिनों लंच वो कैंटीन में ही कर लेता था इसलिए टिफिन बनाने का झंझट नहीं था लेकिन बहू के लिए अलग से नाश्ता बनाना पड़ता था क्योंकि वो जापे में थी। अनुपमा जी जल्दी जल्दी हाथ तो चला रही थीं लेकिन उम्र और बिमारी के शरीर के कारण उनसे काम कुछ धीरे ही होता था।
उन्हें खीझ भी आ रही थी इस कारण से वो बड़बड़ भी कर रही थीं, मेरी तो सारी उम्र ऐसे ही निकलने वाली है …. पहले सास की सेवा की और अब बहू की सेवा करो। अरे एक महीना हो गया डिलिवरी हुए लेकिन पता नहीं आजकल की लड़कियों को कौन सिखाता है कि डेढ़ दो महीने तक बिस्तर पर पड़े रहो। एक हमारी सास थी कि बीस दिन बाद ही चौका चूल्हा सौंप कर पल्ला झाड़ लेती थी।”॥
उनका बड़बड़ाना चालू ही था कि अंदर से उनकी बहू रूपाली ने आवाज लगाई, मम्मी जी, जरा गर्म पानी भी कर दीजिएगा, थरमस में खत्म हो गया है ।” पहले से हीं खीझी हुई अनुपमा जी ये सुनकर और भी खीझ गईं, ” बहू, देखो अब महीना होने को आ गया मानती हूँ तेरे आपरेशन से मुन्ना हुआ है…..लेकिन मैंने भी तो बच्चे जने थे। तेरी दादी सास तो बीस दिन भी आराम करने नहीं देती थी । सारा दिन सुनाती रहती थी । बीस- पच्चीस दिन की ही मैं सारा काम करने लगी थी । ” अनुपमा जी अपने दिनों को याद करते हुए बोलीं।
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“अब तो घरों में काम भी क्या है?? पहले तो रसोई में ही दस जनों का खाना बनाना पड़ता था और बाकी के काम भी हाथों से ही करने पड़ते थे ।”
रूपाली जानती थी कि उसकी सास दिल की बुरी नहीं है । वो तो बस शरीर से अब काम नहीं होता तो चिड़चिड़ी हो गई हैं…. उनकी नाराजगी की वजह उनके शरीर का साथ ना देना ही था।। रूपाली उदास सा चेहरा बनाकर बोली, ” मम्मी जी, मैं भी क्या करूँ….. बहुत कमजोरी महसूस होती है अभी तक। डाक्टर ने भी कहा है कि कम से
कम दो महीने आराम करना है । सर्दी भी बहुत है, अगर ठंड लग गई तो मैं और मुन्ना दोनों ही परेशान हो जाएंगे । मैं तो कब से बोल रही हूँ एक खाना बनाने वाली लगवा लो .. लेकिन आप ही नहीं मानतीं।” ” बहू, ये सब तो चोचले हैं । मुझे पता है यदि एक बार काम वाली लगा ली तो आदत पड़ जानी है। फिर तो एक दिन भी उसके बिना नहीं चलेगा । किसी पर आश्रित रहने से अच्छा से खुद ही काम करते रहो… अपना हाथ जगन्नाथ…. ।,
कहते हुए अनुपमा जी अपना हाथ मसलने लगीं। हाय राम ये हाथ का दर्द तो लगता है मेरे मरने के साथ ही जाएगा । मेरा तो शरीर हीं खराब हो गया जापे में। अगर उस उस वक्त थोड़ी देखभाल हो जाती तो आज यूँ हाथ – पैर पकड़कर नहीं बैठना पड़ता…। भगवान मेरी सास के जैसी सास तो किसी को ना दे । जरा भी दया नहीं आती थी उसे तो मुझपर । तीन- तीन बच्चों को भी मैं खुद हीं संभालती थी और पूरे घर का काम भी करती थी।”
अनुपमा जी रह – रहकर अपनी सास को कोस रही थी और रूपाली उनकी बातें सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रही थीं … । उसे मुस्कुराता देख अनुपमा जी ने चिढ़ते हुए कहा, ” मैं क्या कोई चुटकुला सुना रही हूँ जो तूं मुस्कुरा रही है.!! मेरी जगह अगर तेरी दादी सास होती ना तो इस तरह उनकी बात पर बत्तिसी दिखाने पर इतना नाराज होतीं कि तेरा खाना – पीना भी बंद कर देती.. ऊपर से उनके पैर पकड़कर माफी मांगनी पड़ती वो अलग।” अपनी सास की बात सुनकर रूपाली उनके गले में बाहें डालकर बोली, ” हां मम्मी जी, मैं जानती हूँ कि दादी जी ने आपको बहुत सताया था। तभी तो आपके मन में आज तक उनके लिए कड़वाहट भरी है.. लेकिन मैं अपनी सास को जीवन भर कोसना नहीं चाहती, तभी तो आपके बड़बड़ करने पर भी मैं अभी कोई काम नहीं करती । मुझे मेरी सास के ताने सुनाई ही नहीं देते क्योंकि मैं जानती हूँ कि यदि इस वक्त मैं काम करने लगी तो मेरे हाथ पैरों में भी आपकी तरह दर्द बैठ जाएगा जो आगे मुझे ही परेशान करेगा। फिर मैं भी आपकी तरह अपनी सास को कोसती रहूंगी । ‘
“
रूपाली की बात सुनकर अनुपमा जी ने हौले से उसके गालों पर चपत लगाते हुए कहा ‘ चुप कर शैतान कहीं की… तूं मुझे कोसेगी…!!! चुप चाप पड़ी रह बिस्तर पर और अपना ध्यान रख। ले जल्दी से नाश्ता कर ले.. मुझे भी भूख लगी है।”
रूपाली को नाश्ता पकड़ाकर अनुपमा जी मुस्कुराते हुए कमरे से निकलकर रसोई में आ गईं लेकिन मन ही मन वो भी सोच रही थी, आजकल के बच्चे कितने खुले दिमाग के होते हैं !! जो मन में होता है खुल कर बोल देते हैं … एक हम थे कि सास का एक ताना सुनते ही लग जाते थे अपने शरीर से ऊपर होकर काम करने में … काश मैं भी अपनी बहू की तरह समझदार होती तो आज अपनी सास के लिए मेरे मन में इतनी नाराजगी ना भरती I
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दोस्तों, प्रसव के बाद के ये चालीस दिन नारी जीवन में बहुत अहम होते हैं । इस वक्त मां का शरीर बहुत कमजोर होता है और उसे उचित देखभाल और खान पान की जरूरत होती है। इन दिनों परिवार का साथ बहुत जरुरी होता है जो किसी को पूरा मिलता है तो कोई इससे वंचित रह जाते हैं। लेकिन छोटी छोटी बातों को अनदेखा करके यदि ये वक्त अच्छे से निकल जाए तो भविष्य के लिए स्त्री का शरीर स्वस्थ रहता है।
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